योग से क्या तात्पर्य है ?
योग शब्द संस्कृत की युज् धातु से बना है जिसका अर्थ है जोड़ना. अध्यात्म में इसके द्वारा साधक शरीर को आत्मा से जोड़ते हैं और वैयक्तिक आत्मा को विश्वात्मा से एकाकार करते हैं.
हठ योग प्रदीपिका
प्रथमोपदेशः
भगवान शिव जी को प्रणाम है, जिन्होंने सबसे पहले हठ योग का ज्ञान इस संसार को दिया । यह ज्ञान एक सीढी के समान है, जो एक साधक को राज योग की ऊँचाई तक पहुँचा देता है ।
योगी स्वात्माराम अपने गुरु श्रीनाथ को प्रणाम कर राज योग की प्राप्ति हेतु हठ योग के बारे में बताते हैं ।
राज योग के बारे में बहुत से मत भेद होने के कारण जो अज्ञान रूपी अन्धकार फैला हुआ है, जिसके कारण समान्य जान राज योग के सही सही जान नहीं पा रहे हैं । उन पर कृपा कर स्वात्माराम जी हठ योग प्रदीपिका रूपी रौशनी से इस अन्धकार को मिटाते हैं ।
मत्स्येन्द्र, गोरक्ष आदि सब हठ योग के ज्ञाता थे, और उन की कृपा से स्वात्माराम जी ने भी उनसे इसे सीखा ।
पूर्व काम में ये सिद्ध महात्मा हुये हैं – श्री आदिनाथ जी, मत्स्येन्द्र, नाथ, साबर, अनन्द, भैरव, चौरन्गी, मिन नाथ, गोरक्ष नाथ, विरूपाक्ष, बीलेसय, मन्थन, भैरव, सिद्धि बुद्धै कान्ठादि, करन्तक, सुरानन्द, सिद्धिपाद, चरपति, कानेरि, पिज्यपाद, नात्यनाथ, निरन्जन, कपालि, विन्दुनाथ, काक चन्डीश्वर, अल्लामा, प्रभुदेव, घोदा, चोलि, तितिनि, भानुकि आदि ।
ये महासिद्ध महर्षि, मृत्यु को जीत कर अमृत्व को प्राप्त हुये हैं ।
जैसे घर मनुष्य की धूप से रक्षा करता है, उसी प्रकार हठ योग एक योगी की तीनों प्रकार के तपों की गरमी से रक्षा करता है । जो सदा योग में लगें हैं, यह हठ योग उन के लिये वैसे ही सहारा देता है जैसे सागर मन्थन में भगवान नें कछुये के रूप से पर्वत को सहारा दिया था ।
योगी को हठ योग के ज्ञान को छुपा कर रखना चाहिये, क्योंकि यह गुप्त होने से अधिक सिद्ध होता है और दिखाने से इस की हानि होती है ।
योगी को हठ योग एक शान्त कमरे में, जहां पत्थर, अग्नि, जल आदि से कोई हलचल न हो, वहां स्थित हो कर करना चाहिये और ऐसी जगह रहना चाहिये जहां अच्छे लोग रहते हैं, तथा खाने की बहुलता हो, आसानी से प्राप्त हो ।
कमरे में छोटा दरवाजा हो, कोई सुराख आदि न हों । न वह ज्यादा उँचा हो, न बहुत नीचा, गोबर से अच्छी तरह लिपा हो, और गन्दगी, कीडों आदि से मुक्त हो । उस के बाहर चबूतरा हो और आँगन आदि हो । हठ योग करने के स्थान में ऐसी खूबीयाँ हों तो अच्छा है, यह इस योग में सिद्ध महर्षियों ने कहा है ।
इस स्थान में बैठ कर, और सभी प्रकार के मानसिक उद्वेगों से मुक्त होकर साधक को योग साधना करनी चाहिये ।
योग इन छे कारणों से नष्ट हो जाता है – बहुत खाना, बहुत परिश्रम, बहुत बोलना, गलत नियमों का पालन जैसे बहुत सुबह ठंडे पानी से नहाना या देर रात को खाना या केवल फल खाना आदि, मनुष्यों का अत्याधिक संग, औऱ छटा (योग में) अस्थिरता ।
इन छे से सफलता शिघ्र ही प्राप्त होती है – हिम्मत, नीडरता, लगे रहना, ध्यान देना, विश्वास, और संगती से दूर रहना ।
इन दस आचरणों का पालन करना चाहिये – अहिंसा (किसी भी प्राणी की हिंसा न करना), सत्य बोलना, चोरी न करना, संयम, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, अभिमान हीनता – दैन्य भाव, कम खाना और सफाई ।
योग के ज्ञाता जन यह दस नियम बताते हैं – तप, धैर्य रखना, भगवान में विश्वास, दान देना, भगवान का ध्यान करना, धर्म संवाद सुनना (पढना), शर्म, बुद्धि का प्रयोग, तपस्य करना और यज्ञ करना ।