भस्त्रिका
-- पद्म आसन कहते हैं अपने पैरों को cross कर के अपने thighs पर रखना। इस से सभी पापों का अन्त होता है।
-- पद्मासन में बैठ कर और अपने शरीर को सीधा रख कर, मूँह को ध्यान से बंद कर, वायु को नाक से निकालें।
-- वायु को फिर अपन हृदय कमल (छाती) में भरे, वायु को शक्ति से अन्दर खींचते हुये, आवाज करते और गले, छाती और सिर को छूते।
-- फिर उसे बाहर निकाल कर, दोबारा दोबारा उसी प्रकार भरें, जैसे लौहार हवा मारता है।
-- इस तरह शरीर की वायु को बुद्धि से ध्यान से चलाना चाहिये, उसे सूर्य से भरकर जब भी थकावट लगे।
-- वायु को right nostril से भरना चाहिये अपने अंगूठे को दूसरी नासिका के साथ दबा कर ताकि left
नासिका बंद हो। फिर पूर भर कर उसे चौथी उंगली (नन्ही उंगली के साथ वाली) से अपनी right नासिका बंद कर कर अन्दर रखना चाहिये।
-- इस प्रकार अच्छे से अन्दर रोक कर, फिर उसे left नासिका से निकालना चाहिये। इस से Vata, पित्त (bile) और बलगम खत्म होते हैं और पाचन शक्ति बढती है।
-- इस से कुण्डली जल्दि ही जाग उठती है, शरीर और नाडियाँ पवित्र होती हैं, आनन्द प्राप्त होता है और भला होता है। इस से बलगम दूर होती है और ब्रह्म नाडी के मुख पर एकत्रित अशुद्धता दूर होती है।
-- इस बस्त्रिका को खूब करना चाहिये क्योंकि इस से तीनो गाँठें खुलती हैं - ब्रह्म गन्ठी (छाती में), विष्णु गन्ठी (गले में) और रुद्र गन्ठी (eyebrows के बीच में)।