Author Topic: Yoga For all  (Read 111 times)

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Re: Yoga For all
« Reply #15 on: December 16, 2016, 12:31:58 am »
उज्जयी

-- गले की नाडी का मूँह बंद कर के (ठोडी को पीछे की ओर लगा कर), वायु को इस प्रकार से अन्दर लेना चाहिये जिस से वह गले को छूती हुई, आवाज करती छाती तक पहुँचे।

-- उसे पहले की तरह अन्दर रोक कर रखना चाहिये, और फिर left nostril से बाहर निकालना चाहिये। इस से गले की बलगम कम होती है और भूख बढती है।

-- इस से नाडीयों के रोग खत्म होते हैं, और dropsy औऱ धातु के रोग मिटते हैं। उज्जयी जीवन की हर अवस्था में करना चाहिये, चलते हुये भी और बैठे हुये भी।

सीतकरी

-- सीतकरी मूँह द्वारा साँस अन्दर लेने से की जाती है, जीहवा (tounge) को होठों (lips) के बीच में रख कर। इस प्रकार अन्दर ली गई वायु को फिर मूँह से बाहर नहीं निकालना चाहिये। इस अभ्यास से, मनुष्य कामदेक के समान हो जाता है।

-- वह योगीयों द्वारा सम्मानित होता है और सृष्टि के चक्र से मुक्त होता है। उस योगी को न भूख, न प्यास और न ही निद्रा और आलस सताते हैं।

-- उसके शरीर का सत्त्व सभी प्रकार की हलचल से मुक्त हो जाता है। सत्य में वह इस संसार में जितने भी योगी हैं उन में अग्रणीय हो जाता है।

सीतली

-- जैसे सीतकरी में जीहवा मूँह से जरा बाहर की ओर निकाली जाती है, उसी प्रकार इस में भी किया जाता है। वायु को फिर मूँह से अन्दर ले कर, अन्दर रोक कर और फिर नासिकाओं से निकाला जाता है।

-- इस सीतली कुम्भक से colic, (enlarged) spleen, fever, disorders of bile, hunger, thirst आदि का अन्त होता है और यह जहर को काटता है।


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Re: Yoga For all
« Reply #16 on: December 16, 2016, 12:32:27 am »



भस्त्रिका

-- पद्म आसन कहते हैं अपने पैरों को cross कर के अपने thighs पर रखना। इस से सभी पापों का अन्त होता है।

-- पद्मासन में बैठ कर और अपने शरीर को सीधा रख कर, मूँह को ध्यान से बंद कर, वायु को नाक से निकालें।

-- वायु को फिर अपन हृदय कमल (छाती) में भरे, वायु को शक्ति से अन्दर खींचते हुये, आवाज करते और गले, छाती और सिर को छूते।

-- फिर उसे बाहर निकाल कर, दोबारा दोबारा उसी प्रकार भरें, जैसे लौहार हवा मारता है।

-- इस तरह शरीर की वायु को बुद्धि से ध्यान से चलाना चाहिये, उसे सूर्य से भरकर जब भी थकावट लगे।

-- वायु को right nostril से भरना चाहिये अपने अंगूठे को दूसरी नासिका के साथ दबा कर ताकि left
नासिका बंद हो। फिर पूर भर कर उसे चौथी उंगली (नन्ही उंगली के साथ वाली) से अपनी right नासिका बंद कर कर अन्दर रखना चाहिये।

-- इस प्रकार अच्छे से अन्दर रोक कर, फिर उसे left नासिका से निकालना चाहिये। इस से Vata, पित्त (bile) और बलगम खत्म होते हैं और पाचन शक्ति बढती है।

-- इस से कुण्डली जल्दि ही जाग उठती है, शरीर और नाडियाँ पवित्र होती हैं, आनन्द प्राप्त होता है और भला होता है। इस से बलगम दूर होती है और ब्रह्म नाडी के मुख पर एकत्रित अशुद्धता दूर होती है।

-- इस बस्त्रिका को खूब करना चाहिये क्योंकि इस से तीनो गाँठें खुलती हैं - ब्रह्म गन्ठी (छाती में), विष्णु गन्ठी (गले में) और रुद्र गन्ठी (eyebrows के बीच में)।


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Re: Yoga For all
« Reply #17 on: December 16, 2016, 12:33:10 am »
भ्रमरी

वायु को शक्ति भ्रिंगी (wasp) की आवाज करते हुये भर कर, और फिर उसे वही आवाज करते हुये धीरे धीरे निकालें। यह अभ्यास योगिन्द्रों को अद्भुत आनन्द देता है।

मूर्छा

पूरक (अन्दर साँस लेने) के अन्त में, साँस लेने वाली नाडी को जल्न्धर बन्ध द्वारा अच्छे से बंद करना, और फिर वायु को धीरे धीरे निकालना, इसे मूर्छा कहा जाता है, क्योंकि इस से मन का वेग शान्त होता है और सुख मिलता है।

प्लविनी (किशती के समान)

-- चब पेट में हवा भरी जाती है और शरीर में भरपूर पूरी तरह से हवा भर ली जाये, तो गहरे से गहरे पानी में भी शरीर कमल के पत्ते की तरह तैरने लगता है।

-- पूरक (अन्दर लेना), रेचक (बाहर छोडना) और कुम्भक (अन्दर रोकना) - इस तरह से देखा जाये तो प्राणायम तीन भागों में विभक्त है। लेकिन अगर इसे पूरक और रेचन के साथ, और इन के बिना - इस प्रकार देखा जाये तो यह दो ही प्रकार का है - सहित (पूरक और रेचन के साथ) और केवल (केवल कुम्भक)।

-- सहित का अभ्यास तब तक करते रहना चाहिये जब तक केवल प्राप्त न हो जाये। केवल का अर्थ है वायु को अन्दर रखना बिना किसी मुश्किल के, बिना साँस लिये या निकाले।

-- केवल प्राणायम के अभ्यास में, जब उसे ठीक प्रकार से रेचक और पूरक के बिना किया जा सके तो उसे केवल कुम्भक कहते हैं।

-- उस के लिये इस संसार में कुछ भी प्राप्त करना कठिन नहीं है, जो अपनी इच्छा अनुसार वायु को अन्दर रोक कर रख सकता है केवल कुम्भक के माध्यम से।

-- उसे असंशय रूप से राज योग प्राप्त हो जाती है। उस कुम्भक द्वारा कुण्डली जागरित होती है और उसके जागरित होने से सुशुम्न नाडी (बीच की नाडी) अशुद्धता मुक्त हो जाती है।

-- राज योग में हठ योग के बिना कोई सफलता नहीं मिल सकती, और हठ योग में राज योग के बिना कोई सफलता नहीं है। इसलिये, मनुष्य को इन दोनो का ही जम कर अभ्यास करना चाहिये जब तक पूर्ण सिद्धि न प्राप्त हो जाये।

-- कुम्भक के अन्त में मन को आराम देना चाहिये। इस प्रकार अभ्यास करने से मनुष्य राज योग की पद को प्राप्त कर लेता है।


हठ योग के पथ में सिद्धि के लक्षण

जब शरीर पतला हो जाये, मुख आनन्द से उज्वल हो जाये, अनहत नाद उत्पन्न हो, आँखें साफ हो जायें, शरीर निरोग हो जाये, बिंदु पर काबु हो जाये, भूख बढ जाये - तब योगी को जानना चाहिये की नाडीयाँ स्वच्छ हो गईं हैं और हठ योग में सिद्धि निकट आ रही है।

On Mudras

-- जिस प्रकार भगवान अनन्त नाग पर ही यह संपूर्ण संसार टिका हुआ है, उसी प्रकार सभी तन्त्र (योग क्रियायें) भी कुण्डली पर टिकी हैं।

-- जब गुरु की कृपा से सोती हुई कुण्डली शक्ति जागती है, तब सभी कमल (छे चक्र) और गन्ठियां भिन्न हैं।

-- सुशुम्न नाडी प्राण का मुख्य पथ बनती है, और मन तब सभी संगों और विचारों से मुक्त हो जाता है, तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है।

-- सुशुम्न, शुन्य पदवी, ब्रह्म रन्ध्रा, महापथ, स्मासन, संभवी, मध्य मार्ग - यह सब एक ही वस्तु के नाम हैं।

-- इसलिये, इस कुण्डली देवी को जगाने के लिये, जो ब्रह्म द्वारा पर सो रही है, मुद्राओं का अभ्यास करना चाहिये।


The Mudras

-- दस मुद्रायें हैं जो जरा और मृत्यु का विनाश करती हैं। ये हैं महा मुद्रा, महा बन्ध, महा वेध, केचरी, उद्दियान बन्ध, मूल बन्ध, जल्न्धर बन्ध, विपरीत करनी, विज्रोली, शक्ति चलन।

-- इनका भगवान आदि नाथ (शिवजी) नें वर्णन किया है और इन से आठों प्रकार की दैविक सम्पत्तियाँ प्राप्त होती है। सभी सिद्धगण इन्हें मानते हैं, और ये मारुतों के लिया भी प्राप्त करनी कठिन हैं।

-- इन मुद्राओं को हर ठंग से रहस्य रखना चाहिये, जैसे कोई अपना सोने की तिजोरी रखता है, और कभी भी किसी भी कारण से किसी को नहीं बताना चाहिये जैसे पति और पत्नि आपनी आपस की बातें छुपाते हैं।


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Re: Yoga For all
« Reply #18 on: December 16, 2016, 12:33:45 am »


The Maha Mudra

-- योनि (perineum) को अपने left पैर का एडी से दबाते हुये, और right पैर को आगे फैला कर उसकी उंगलीयों को अपने अंगूठे और पहली उंगली से पकड कर बैठें।

-- साँस अन्दर लेने के बाद जलन्धर बन्ध (Jalandhara Bandha) द्वारा वायु को नीचे की ओर धकेलें। जैसे साँप सोटी की मार से सोटी की तरह सीधा हो जाता है उसी प्रकार शक्ति (कुण्डली) भी इस से सीधी हो जाती है। तब कुण्डली ईद और पिंगल नाडीयों को त्याग कर सुशुमन (मध्य मार्ग) में प्रवेश करती है।

-- फिर वायु को धीरे धीरे धोडना चाहिये, जोर से नहीं। इसी कारण से इसे बुद्धिमान लोगों ने महामुद्रा कहा है। महा मुद्रा का प्रचार महान ऋषियों ने किया है।

-- महान कष्ट जैसे मृत्यु इस से नष्ट होते हैं, और इसी कारण से इसे महा मुद्रा कहा गया है।

-- इसे left nostril से करने के बाद, फिर right नासिका से करना चाहिये और जब दोनो तरफ का अंग बराबर हो तभी इसे बंद करना चाहिये।

-- इसमें सिद्ध होने के बाद कुछ भी खतरनाख या हानिकारक नहीं है क्योंकि इस मुद्रा के अभ्यास से सभी रसों के हानिकारक तत्वों का अन्त हो जाता है। जहरीले से जहरीला जहर भी शहद जैसे असर करता है।

-- भूख न लगना, leprosy, prolapsus anii, colic, and और बदहजमी के रोग,-- यह सब रोग इस महामुद्रा के अभ्यास से दूर हो जाते हैं।

-- यह महा मुद्रा महान सफलता दायक बताई गई है। इसे हर प्रयास से रहस्य ही रखना चाहिये और कभी भी किसी को भी बताना नहीं चाहिये।

The Maha Bandha

-- अपनी left ऐडी को अपने नीचे दबा कर (perineum के साथ दबा कर) अपने right foot को अपने left thigh पर रखें।

-- फिर साँस अन्दर ले कर, अपनी ठोडी को अच्छे से छाती पर दबा कर, और इस प्रकार वायु को दबा कर, मन को eyebrows के मध्य में स्थापित करें।

-- इस प्रकार जब तक संभव हो वायु को रोक कर, फिर धीरे धीरे निकालें। इसे left side पर करने के बाद फिर right तरफ करें।

-- कुछ मानते हैं की गले का बंद करना जरूरी नहीं है, क्योंकि जीहवा को अपने ऊपर के दाँतों की जड़ के against अच्छे से दबा कर रखा जाये, तब भी अच्छा बन्ध बनता है।

-- इस बन्ध सो सभी नाडीयों में ऊपर की ओर का प्रवाह रुकता है। यह मुद्रा महान सफलता देने वाली है।

-- यह महा बन्ध मृत्यु को काटने का सबसे होनहार उपकरण है। इस से त्रिवेणी उत्पन्न होती है (conjunction of the Triveni (Ida, Pingala and Susumna)) और मन केदार को जाता है (eyebrows के मध्य का स्थान, भगवान शिव का स्थान)।

-- जैसे सौन्दर्य और सौम्यता एक नारी को बेकार हैं यदि उस का पति न हो, उसी प्रकार महा मुद्रा और महा बन्ध बेकार हैं महा वेध के।

The Maha Vedha

-- महा बन्ध में बैठ कर, योगी को वायु भर कर अपने मन को बाँध कर रखना चाहिये। गले को बंद करने द्वारा वायु प्रवाह (प्राण और अपान) को रोकना चाहिये।

-- दोनो हाथों को बराबर धरती पर रख कर, उसे स्वयं को जरा सा उठाना चाहिये और फिर अपने buttocks को धरती पर आयसते से मारना चाहिये। ऐसा करने से वायु दोनो नाडीयों को छोड कर बीच का नाडी में प्रवेश करती है।

-- इस प्रवेश को ईद और पिंगल का मिलन कहते हैं, जिस से अमरता प्राप्त होती है। जब वायु ऐसे हो जाये मानो मर गई है (हलचल हीन हो जाये) तो उसे निकाल देना चाहिये।

-- इस महा वेध का अभ्यास, महान सिद्धियाँ देने वाला है, जरा का अन्त करता है, सफेद बाल, शरीर का काँपना - इन का अन्त करता है। इसलिये, महान योगी जन इसका सेवन करते हैं।

-- यह तीनों (मुद्रायें) ही महान रहस्य हैं। यह जरा और मृत्यु के नाशक हैं, भूख बढाते हैं, और दैविक शक्तियां प्रदान करते हैं।

-- इन्हें आठों प्रकार से अभ्यास करना चाहिये - हर रोज। इन से पुण्य कोश बढता है और पाप कम होते हैं। मनुष्य को, अच्छे से सीख कर धीरे धीरे इन्का अभ्यास बढाना चाहिये।


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Re: Yoga For all
« Reply #19 on: December 16, 2016, 12:34:27 am »
सुबह सुबह ठंडे पानी से नहाना

अगर आप कड़कड़ाती सर्दी में भी ठंडे पानी से नहाने से गुरेज नहीं करते तो संभल जाइए। ऐसा करने से आपको हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर बढ़ने की शिकायत हो सकती है। चिकित्सक भी इस बात की सलाह देते है कि सर्दियों में ठंडे पानी में नहाना आपको मुसीबत में डाल सकता है। इसलिए सर्दी के इस मौसम में गरम पानी या फिर गुनगुने पानी से स्नान करना ही बेहतर होता है।

चिकित्सक बताते है कि सर्दियों में रात के रखे ठंडे पानी या टंकी के पानी से नहाने पर रक्त बहाव कम हो जाता है। इससे कई बार शरीर में सिकुड़न होने के कारण कई महत्वपूर्ण हिस्सों पर रक्त का संचालन कम हो जाता है। ऐसे में दिल की धमनियों में रक्त न जा पाने के कारण हार्ट अटैक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा ब्लड प्रेशर की बढ़ने की भी शंका रहती है।

ठंडे पानी से सबसे ज्यादा ब्लड प्रेशर बढ़ने के संभावना रहती है। उन्होंने बताया कि इससे मधुमेह के मरीजों को भी परहेज रखना चाहिए। इसका कारण है कि खून की नियमित सप्लाई कम होने से मधुमेह के मरीजों में अन्य समस्या भी पैदा हो सकती है। यदि कोई घाव है तो वह भरने की बजाय और ज्यादा फैल सकता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. आरके नय्यर ने बताया कि ठंडे पानी से नहाने से आंखों पर भी असर पड़ता है। इससे आंखों की नसें सिकुड़ सकती हैं और आंखों में सूजन भी बढ़ सकती है। इसके अलावा सरवाईकल की भी परेशानी हो सकती है। चिकित्सक बताते है कि खून की सप्लाई ठीक से न होने पर गुर्दे पर भी असर पड़ता है।

इसके अलावा रेस्पीरेटरी इंफेक्शन की भी संभावना रहती है। बच्चे इसकी चपेट में सबसे ज्यादा आते हैं। खांसी, जुकाम और निमोनिया की परेशानी जिसको नहीं है उसको भी हो सकती है। दिमाग पर भी इसका असर पड़ता है। सुबह के समय ठंडे पानी से नहाने पर आपके शरीर में दर्द भी हो सकता है।

कैसे करे बचाव?

- हल्के गुनगुने पानी से नहाएं

- सोकर उठने के साथ ही एकदम न नहाएं

- बच्चों को ज्यादा गर्म पानी से नहलाने से परहेज करे


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Re: Yoga For all
« Reply #20 on: December 16, 2016, 12:35:40 am »
समय के साथ नहाने के तौर तरीकों में बहुत फर्क आया है। बाल्टी के मुकाबले नहाने में शावर का इस्तेमाल आम हो गया है लेकिनर्बिटेन के माइनलैब इंटरनेश्नल के न्यूरोसाइक्लांजिस्ट डां. डेविड लिविस के दल ने सम्पूर्ण स्रान के लिए शांवर उपकरणविकसित किए हैं। डां. डेविड कहते हैं कि शांवर खोल कर पानी के नीचे खड़े हो जाना ही नहाना नहीं है। सम्पूर्ण स्रान के कई शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लाभ हैं। मानव त्वचा के हर वर्ग इंच में हजारों की तादाद में ऐसे संवेदक होते हैं, जो मसि्तष्क से जुड़े होते हैं। र्बिटेन में 1000 लोगों पर स्रान से जुड़ी आदतों का शोध करने के बाद डां. डेविड इस नतीजे पर पहुंचे कि बाथरूम में निजता की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। स्रान के दौरान एक्रागता बेहद जरूरी है। शांवर से निकलने वाले पानी का दबाव इतना नहीं होना चाहिए कि रोम छिद्र प्रभावित हों और मसि्तष्क पर प्रतिकूल असर पड़े। बच्चों को दिया जाने वाला शांवर का दबाव हल्का होना। उनके अनुसार कई बार देखा जाता है कि लोग पानी का तापमान ज्यादा कर नहाते हैं। इससे हमारा पाचन तंत्र तो प्रभावित होता ही है, त्वचा के कोमल हिस्सों के नष्ट होने का खतरा भी रहता है। बाथरूम साफ.सुथरा होना चाहिए। शोध के दौरानपाया गया है कि सुगंधित स्रानघरों में नहाने के बाद शरीर हल्का.फुल्का हो जाता है और चित्ता को शांति मिलती है। बहुत ज्यादा देर तक नहाना भी नुकसान पहुंचाता है। पानी के नीचे उतना ही समय गुजारे, कि जिस्म साफ हो जाए और आपको ताजगी महसूस हो।गरम पानी के बाद शरीर पर किसी भी सि्थति में ठंडा पानी नहीं पड़ना चाहिए


 

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